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कविता

मिट्ठू हमारे घर में

हरीशचंद्र पांडे


बाहर गए हुए हैं पड़ोसी
हफ्ते भर से मेरे घर में है पड़ोसी का मिट्ठू

चहक उठा है घर

जो दिन भर चुप्प रहा करता था वह गाना गा रहा है उसके लिए
जो बात करने के नाम पर काटने दौड़ता था वह
सीटी सिखा रहा है
घर से निकलते वक्त सब कहने लगे हैं
अच्छा मिट्ठू जा रहा हूँ
टूटा है पिता का लंबा अबोल
उन्होंने आज बेटा कहा है मिट्ठू से

किसके पास कितनी मिठास बची है अभी भी
सब खोल के रख दिया है मिट्ठू ने

 


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